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parampujy Guruvar Sudhanshuji Maharaj ka Shishay

Monday, March 7, 2016

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From: Madan Gopal Garga <mggarga2013@gmail.com>
Date: 2016-03-07 9:46 GMT+05:30
Subject:
To: Madan Gopal Garga <mggarga@gmail.com>


ॐ नमो: शिवाय:!
गुरूदेव समझा रहे है-
शिवरात्रि पर्व नहीं महापर्व है।व्रत नहीं महाव्रत है।इस पावनरात्रि में अपनी मोहनिद्रा को त्यागकर आत्म जागरण के लिए तैयार हो जाइए।इस अनूठे आध्यात्मिक जागरण का भाव है।सजग हो जाना,सावधान होकर जीवनयापन करना।जो हमारा बालपन था,जो लापरवाही थी उसे त्यागकर,अनुशासित एवं मर्यादित जीवन जिएं।यह सुनहरा अवसर है शिवसंकल्प करने का और कल्याण के पथ पर अग्रसर होने के लिए कुछ नूतन योजनाएं तैयार करने का।
हमने शंकर,पार्वती की मूर्ति मंदिर में स्थापित कर ली है,नित्य जल चढ़ाते हैं,फल-फूल चढ़ाते हैं, चंदन लगाते हैं, आरती उतारते हैं और नमस्कार करते हैं, परंतु इससे विशेष लाभ नहीं मिलने वाला है।अध्यात्म का लाभ लेना है,तो अपने अंदर सोई हुई श्रध्दा और विश्वास को जगाना होगा, भगवान् शिव के स्वरूप के प्रीतकार्य को समझकर उसे जीवन में अपनाना होगा।
शंकर भगवान् की जटाओं से गंगा निकलती है अर्थात् हमारे मस्तिष्क से भी पवित्र,पावन,शुद्ध विचार ही निकलने चाहिए।गंगा पवित्रता का प्रतीक है,जो समस्त मानव जाति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। उनके सिर पर चंद्रमा है।चंद्रमा शीतलता,शांति और सरसता का प्रतीक है।कैसी भी विपरीत परिस्थितियां क्यों न आ जाएं, पिफर भी संतुलित बने रहें।विवेक से धैर्यपूर्वक समस्या का सामना करें। क्रोध् और अविवेक के भाव न आने दें।
भगवान् के सच्चे भक्तों को कभी अपना मानसिक संतुलन नहीं खोना चाहिए।शंकर जी के गले में विषधर लिपटें हैं।यह उनकी कला है कि दुष्ट प्रवृत्ति के जीवों को भी वश में करके उनसे मनचाहा कार्य करा लेते हैं। अपने प्रभाव से,क्षमता से दुष्टों को भी सुधारकर अपने अनुरूप सज्जन बना लेना चाहिए।जिस प्रकार भगवान् बुद्ध ने अंगुलीमाल का और नारद मुनि ने रत्नाकर का जीवन बदलकर उन्हें महान बना दिया था।
भगवान् शंकर अपने शरीर में भस्म रमाते हैं,नरमुंडों की माला पहनते हैं और मरघट में रहते हैं।इससे हमें यही शिक्षा मिलती है कि यह शरीर एक दिन मुट्ठीभर भस्म के रूप में बदल जाने वाला है।अतः मौत को सदा याद रखें,इस दुर्लभ मनुष्य जीवन का सदुपयोग करें। लक्ष्य के प्रति सावधान रहें।जो व्यक्ति मौत को सदा याद रखता है,वह पाप,अत्याचार,अन्याय से बचकर श्रेष्ठ मानवोचित जीवन जीता है।उसका इहलोक तो सुध्रता ही है,परलोक भी सुध्र जाता है।राजा परीक्षित ने मौत को याद रखा तो सात दिनों में ही मुक्ति प्राप्त कर ली। हम सबको भी सात दिन ही तो जीना है।सप्ताह में सात दिन होते हैं,उनमें से ही हमें किसी दिन जाना है।हमारा यह जीवन लोक मंगल के कार्यों में लगा रहे,यही उद्देश्य रहे।शंकर जी की बारात में लूले, लंगड़े,अंधे सभी प्रकार के लोग थे। हमें भी दीन-हीन एवं समाज के सभी पिछड़े लोगों को साथ लेकर चलना चाहिए।किसी की भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। आजीवन सेवा करते रहे।भगवान् राम ने रीछ,वानर तक को साथ रखा था।भगवान् कृष्ण ने तो ग्वाल-बालों को सदैव अपने साथ रखकर यह दिखाया कि पिछड़ों की उपेक्षा कभी नहीं करें।उन्हें भी उचित सम्मान दें।
शंकर जी का तीसरा नेत्र भी है। उन्होंने जब तीसरा नेत्र खोला था,तब कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया था। यह तीसरा नेत्र ज्ञान का, विवेक का प्रतीक है।इसे स्वयं विकसित करना होता है। हमारी दूरदर्शिता,विवेकशीलता जागृत होनी चाहिए।जब तीसरा नेत्र जागृत होता है, तब शरीर ही नहीं,आत्मा भी दिखाई देती है।आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता दिखाई देने लग जाती है।शंकर जी बैल की सवारी करते हैं, बैल हमेशा श्रम करता है,शंकर जी का यह वाहन हमें श्रमशीलता की शिक्षा देता है।
शंकर जी का प्रतीक पिंड होता है। यह पिंड विश्व-ब्रह्मांड का प्रतीक है, यह ईश्वर के विराट रूप का प्रतीक है। हमें सारे विश्व को ईश्वर का स्वरूप मानकर संसार की सेवा करनी चाहिए।
भगवान् शिव के वाहन नन्दी का एक ही पांव दिखाई देता है।लेकिन नन्दी का मुख हमेशा भगवान् शिव की ओर रहता है।अर्थात् धर्म का मुख हमेशा भगवान् की तरफ ही लगा रहता है। शिव के ऊपर जल की धरा निरंतर गिरती है।इससे यह ज्ञात होता है कि शिव भक्ति अनवरत होनी चाहिए। शिव पूजा में आप मिठाइयों के साथ-साथ बेल पत्ते, फल-फूल,तृण,यहां तक कि भांग-धतूरा आदि चढ़ाते हैं। इस बात से यह बोध् होता है कि वहां पदार्थों का महत्त्व नहीं है,वरन् सद्भावनाओं का मूल्यआंका जाता है।
जीवन का सबसे सुन्दर काल है महाशिवरात्रि की अमृत बेला।शिव को इतना मूल्य दो कि मानो दुनिया में शिव से बढ़कर कोई चीज हो ही नहीं सकती मेरा शिव ही सब में समाया है।अपने हाथों से जितना हो सके सेवा करें, ज्ञान दृढ़ करें,धैर्य कमजोर न पड़ने दें।राग-द्वेष से उपर उठें और अपने को कल्याणकारी कार्यों में लगाएं। जहां तक हो सके दूसरों का भला करें।हर रोज यह आकलन करें कि मैंने आज किसी का कुछ भला किया या नहीं।क्या मैंने शिव को जो पसन्द आए वैसा कोई काम किया है? यही रास्ता शिवत्व की तरफ जाता है।
उसकी राह पर चलने वाले बनें। उसकी राह में दाता बनकर चलें।धर्म की रक्षा करिए,धर्म हमारी रक्षा करेगा।अपने मन को एकाग्र कर ऐसा टिकाइए कि कुछ और याद ही न आए, केवल शिव-ही-शिव स्मरण रहे। भगवान् शिव भूतभावन हैं,नटनागर नटराज हैं।वे नृत्य मुद्रा में भी दृष्टिगत होते हैं।इसका मतलब है कि उनका ध्यान करने वाले परिस्थितियों से भागते नहीं,नृत्य करते हुए उत्सव मनाते हैं।उल्लास एवं आनंदपूर्वक जीवन जीते हुए सुखी रहते हैं तथा दूसरों को भी खुशियां प्रदान करते हैं। शिवभक्ति ऐसा धन है जिसके द्वारा व्यक्ति आनंद का अमर खजाना पा सकता है।परमात्मा को अपना सहारा बना लें उसी का नाम जपें और प्रसन्न रहें।परमात्मा के आधार के बिना जीवन निराधर है।ॐ नमों: शिवाय:!सादर हरि ॐ जी!जय गुरुदेव!